
- मरुस्थलीय क्षेत्र के गीत - रतन राणौ, केवड़ा, घूघरी, डोरा मूमल
- मैदानी भागो के गीत - इन गीतों में भक्ति और श्रृंगार का अद्भूत समन्वय पाया जाता है।
- आदिवासी क्षेत्र के गीत - पटेल्या, लालर बिछियों
विवाह से सम्बन्धित राजस्थानी गीत

1. मोरिया लोकगीत- ऐसी बालिका जिसकी सगाई हो गई एंव विवाह में देरी है, उसके द्वारा गाया जाता है।
2. बना-बनी लोकगीत- दूल्हे व दुल्हन के लिए गाये जाने वाले गीत
3. दुपट्टा लोकगीत- दुल्हे की सालियों द्वारा गाया जाने वाला गीत ।
4. कामण लोकगीत- वर को टोने - टोटके से बचाने के लिए गाये जाने वाले गीत ।
5. घोड़ी लोकगीत- वर निकासी के समय गाया जाता है।
6. जलो व जलाल - वधू पक्ष की महिलाए वर के बारात के स्थान को देखने जाते समय यह गीत गाती है।
7. ओल्यूं लोकगीत- बेटी की बिदाई के अवसर पर गाया जाता हैं।
8. सीठणे लोकगीत- आनन्द व उल्लास के लिए गाये जाने वाले गाली गीत
9. पावणा लोकगीत- नये दामाद के पहली बार ससुराल जाने पर भोजन कराते समय गाये जाने वाले गीत
राजस्थान के विभिन्न क्षेत्रों में प्रचलित लोकगीत

1. ढोला मारू लोकगीत- सिरोही क्षेत्र में गाया जाने वाला लोक गीत जिसमें ढोला-मारू की प्रेम कथा का वर्णन हुआ है।
2. हमसीढ़ो लोकगीत- उत्तरी मेवाड़ के भीलो का प्रसिद्ध लोक गीत जिसे स्त्री व पुरुष साथ मिलकर गाते है।
3. बिच्छुड़ो लोकगीत- हाड़ोती क्षेत्र में गाया जाता है जिसमें मरणासन्न पत्नी जिसे बिच्छु ने डस लिया है अपने पति से दूसरे विवाह की प्रार्थना करती है।
4. पछीड़ा लोकगीत- हाड़ोती एंव ढूंढाड़ क्षेत्र में गाया जाता है।
5. हिचकी लोकगीत- मेवात (अलवर, भरतपुर) क्षेत्र का प्रसिद्ध गीत जो किसी की याद आने पर गाया जाता है।
6. रसिया लोकगीत- ब्रज क्षेत्रों एंव पूर्वी राजस्थान (भरतपुर, धौलपुर, करौली एंव स. माधोपुर) में गाये जाते है।
राजस्थान के श्रृंगारिक लोकगीत
1. मूमल लोकगीत - जैसलमेर क्षेत्र में गाया जाता है मूमल के नख - शिख का वर्णन हुआ।
2. गोरबन्द लोकगीत - ऊट के गले के आभूषण कहा जाता है रेगिस्तानी एंव शेखावाटी क्षेत्र में यह गीत गाया जाता है।
3. कांगसियो लोकगीत - गणगौर के अवसर पर गाया जाना वाले श्रृंगारिक गीत ।
4. काजलियो लोकगीत - होली के अवसर पर चंग वाद्य यंत्र के साथ यह गीत गाया जाता है।
5. लावणी - दो तरह की होती है ।
(i) श्रृंगारिक - नायिका नायक को बुलाने के लिए गाती है।
(ii) भक्ति-संबंधी - देवी-देवताओं की आराधना में गाई जाती है।
विरहणी नायिकाओं के गीत
1. कुंरजा - कुंरजा एक प्रवासी पक्षी है जिसके माध्यम से नायिका अपने प्रदेश गये पति को सन्देश भेजती है।
2. सुपणा - विरहणी नायिका के सपने से सम्बन्धित गीत ।
3. पपीहा / पपैया - दाम्पत्य जीवन के आदर्श का परिचायक लोक गीत जिसमें नायिका अपने प्रियतम से उपवन में आकर मिलने की प्रार्थना करती है।
4. पीपली - रेगिस्तानी एंव शेखावाटी क्षेत्र में श्रावण में तीज के त्योहार से पूर्व गाया जाने वाला गीत जिसमें विरहणी नायिका के प्रमोदगारो का वर्णन हुआ है।
5. कागा -इस गीत में विरहणी नायिका अपने प्रदेश गये पति के आने का शगुन मनाती है और कौए को विभिन्न प्रलोभन देकर उड़ने के लिए कहती है।
6. केसरिया बालम - मांड शैली का रजवाड़ी गीत जिसे नायिका परदेश गये पति को बुलाने के लिए गाती है।
7. चिरमी - चिरमी एक वानस्पतिक पौधा है इस गीत में भाई व पिता की प्रतीक्षारत ग्राम वधू की मनोदशा का वर्णन हुआ है ।
8. झोंरावा - जैसलमेर क्षेत्र में परदेश गये पति को बुलाने के लिए नायिका यह गीत गाती है।
देवी देवताओं से सम्बन्धित गीत

1. लांगुरिया गीत - करौली क्षेत्र में कैला देवी की आराधना में लांगूरिया नृत्य के साथ गाया जाने वाला गीत ।
2. राति जग्गा गीत - नांगल, विवाह, मुंडन, पुत्र-पुत्री जन्म या मनौती पूर्ण होने पर रात भर जाग कर देवी-देवताओं की आराधना में गाये जाने वाले गीत ।
3. हरजस गीत - सगुण भक्ति गीत जिसमें राम व कृष्ण की लीलाओं का वर्णन होता है।
4. तेजा गीत - किसानों प्रेरक गीत जिसे किसान फसल की बुवाई से पूर्व गाते है ।
अन्य राजस्थान लोकगीत
1. जच्चा / होलर गीत- पुत्र / पुत्री जन्म के अवसर पर
2. पणिहारी गीत - पानी भरने वाली स्त्री पणिहारी कहलाती है। इस गीत में राजस्थानी स्त्री के पति व्रत धर्म पर अटल रहने को बताया गया है।
3. इंडोणी गीत - नारियल सूत या मुंज की बनी हुइ गोल चकरी जो सिर पर बोझा उठाने के काम आती है महिलाए पानी भरने जाते समय यह गीत गाती है ।
4. बधावा गीत - शुभ या मांगलिक अवसरो पर गाये जाते है ।
5. हिंडो / हिडोलिया गीत- श्रावण मास में महिलाए जुला जुलते समय यह गीत गाती है।
6. जीरों गीत - जीरे की फसल शीघ्रता से नष्ट हो जाती है अतः इस गीत में नायिका अपने प्रियतम से जीरे की फसल नही बोने की प्रार्थना करती है।
7. घूमर गीत - गणगौर, विवाह एंव अन्य मांगलिक अवसरो पर घूमर नृत्य के साथ गाया जात है जलधर सांरग राग पर आधारित है।
8. घुडला गीत- मारवाड़ में घुडला नृत्य के साथ यह गीत गाया जात है।
राजस्थान की प्रमुख मांड गायिकाय

मांड राग - 10 वी शताब्दी में जैसलमेर क्षेत्र मांड कहलाता था और यहा पर शास्त्रीय संगीत की एक लोक - गायन शैली विकसित हुई जिसे मांड गायन कहा जाता है।
1. स्वर्गीय हाजन अल्लाह जिलाई बाई (बीकानेर) :
उपनाम - मरूकोकिला
संगीत गुरु - उस्ताद हुसेन बख्शबीकानेर म्युजिकल स्कूल में अच्छन महाराज, लच्छू महाराज, शीबू महाराज, अमीर खां एंव शम्सुद्दीन शेख से राग मांड, दादरा, ठुमरी एंव नृत्य की बारिकीयां सीखी।
उपलब्धिया -
➤ बीकानेर महाराज गंगासिंह के समक्ष मांड गायन किया ।
➤ 1987 में लंदन के अल्बर्ट हॉल में मांड गायन किया।
➤ 15 May 1982 में राजस्थान श्री एंव 20 May 1982 में पदमश्री अवार्ड मिला।
➤ निधन - 3 Nov 1992
2. स्व. गवरी बाई :- (पाली)
इनका विवाह जोधपुर निवासी मोहनलाल के साथ हुआ ।
उपलब्धिया -
➤ 1954 में जयपुर में आयोजित अखिल भारतीय संगीत प्रतियोगिता में राजस्थान की लोक गायिका के रूप
में भाग लिया।
➤ 1986 में केन्द्रिय संगीत नाटक अकादमी का सर्वोच्च पुरूस्कार मिला इनके द्वारा सादा मांड गायन किया जाता था ।
3. गवरी देवी (पाली)
➤ पिता - हीरोजी
➤ माता - गुलाबी
उपलब्धियाँ -
➤ 1996 – 97 में जवाहर कला केन्द्र, जयपुर की ओर से आयोजित राज्य स्तरीय संगीत प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त किया । भैरवी राग से मांड गायन करती है।
4. स्व. मांगीबाई (मेवाड़)
➤ उपनाम – लोक सुरो की शहनाई
➤ पिता - कमलराम
➤ पति - रामनारायण ( बड़ी सादड़ी)
➤ निधन - नवम्बर 2017
5. बन्नो बेगम (जयपुर)
➤ दरबारी परम्परा की मांड गायिका । वर्तमान में इनकी शिष्याएँ प्रेमकवंर और रंजनीपाण्डे प्रमुख मांड गायिका मानी जाती है।
6. जमीला बानो (जोधपुर)
➤ राजस्थान की लता - सीमा मीश्रा
➤ थार की लता - रूकमा बाई मांगणियार ( रामसर, बाड़मेर)
➤ राजस्थान की पहली फिल्म - नजरानो (1942)
➤ राजस्थान की पहली रंगीन फिल्म - लाज राखो राणी सती
➤ राजस्थान की पहली बाल फिल्म - डूंगर रो भेद
➤ राजस्थान फिल्मो के प्रथम नायक - महिपाल
➤ प्रथम नायिका - सुनयना